Friday, 9 December 2016
Sunday, 31 July 2016
देवगढ़ धाम के लिए निकला कांवरियों का दल
सावन के दूसरे सोमवार को करेंगे जलाभिषेक
उदयपुर:- बोल बम कांवरिया संघ उदयपुर एवं अन्य सैकड़ों कांवरिया, माताओं, बहनों ने रविवार की सुबह महेशपुर धाम के समीप से बहने वाली उत्तर वाहिनी रेणुका नदी से जल उठाकर अर्द्धनारेश्वर शिवधाम देवगढ़ के लिए प्रस्थान किये। कांवरियों ने रेणुका नदी पर स्नान के पश्चात् जल भरा एवं विधिवत् पंडित से कांवर की पूजा करायी तत्पश्चात् महेशपुर धाम में प्रथम पूजा कर बोल बम का जयकारा लगाते हुये अपनी यात्रा आरंभ किये। महेशपुर से देवगढ़ की दूरी लगभग 32 किलोमीटर है कांवर यात्रा के दौरान कांवरियों का उत्साह देखते ही बनता था। बाबा नगरिया दूर है जाना जरूर है जैसे नारों के साथ पूरा आकाश गुंजायमान हो रहा था। कांवरियों का दल सुबह 10 बजे स्थानीय शिव मंदिर पर पहुंची। नगरवासियों ने कांवरियों का उत्साहपूर्वक स्वागत किया और जलपान कराया। आंधे घंटे की बिश्राम के बाद कांवरियों का दल आगे की यात्रा के लिए प्रस्थान किये। रास्ते में सलका, खम्हरिया एवं अन्य जगहों पर ग्रामीणों ने कांवरियों का स्वागत किया। 12 घंटों की कठिन परंतु आनंदमयी यात्रा के बाद सायं 6 बजे करीब कांवरियों का दल देवगढ़ धाम पहुंचा। रात्रि बिश्राम के पश्चात् सावन के दूसरे सोमवार को सुबह जलाभिषेक करेंगे। कांवरियों में शुभम, गोविन्दा, शिवम, जेण्डी, आलोक, बंटी, सावन, आकाश, बल्लू, मनीष, राजेश, सोनू, भोला, अनीब, राजा, चंदन, अंकित, विजय, सतीश, सूरज, सचिन, टान्जू इत्यादि शामिल रहे।Wednesday, 15 June 2016
Sunday, 20 March 2016
कोल कंपनी की मनमानी पर ग्रामीणों में आक्रोश
पुर्नवास एवं अन्य मांगों को लेकर केते बासेन में दूसरे दिन भी काम बंद
तीसरे दिन प्रशासन के लोगों की उपस्थित में बनी सहमति के बाद खदान का काम फिर प्रारंभ हुआ।
उदयपुरः- सरगुजा जिले के सुदूर वनांचल क्षेत्र विकास खण्ड उदयपुर अंतर्गत स्थित परसा ईस्ट एवं केते बासेन कोल परियोजना की संचालनकर्ता कंपनी अदानी की मनमानी से प्रभावित क्षेत्र के लोगों का आक्रोश फुट पड़ा है। जनदर्षन एवं जन समस्या निवारण षिविर में आवेदन देने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं होने पर पुर्नवास, 18 वर्ष पूर्ण कर चुके युवाओं को नौकरी, बसाहट क्षेत्र के प्लाट का पट्टा, मुआवजा एवं अन्य मांगों को लेकर ग्रामीणों ने केते सरहद एवं बासेन में चल रहे कामों को बंद करा दिया है जो आज लगातार दूसरे दिन शुक्रवार को भी बंद रहा। कोल परियोजना में प्रभावित क्षेत्र केते की पूरी बस्ती के ग्रामीणों को विस्थापित कर पुर्नवास दिया जाना है। चर्चा के दौरान आंदोलन स्थल पर उपस्थित ग्रामीण राजकुमार एवं कमान सिंह ने बताया परियोजना आरंभ होने से पूर्व तत्कालीन कलेक्टर सरगुजा की उपस्थिति में ग्राम सभा का आयोजन किया गया था। जिसमें परियोजना से विस्थापित होने वाले परिवारों को पुर्नवास नीति के प्रावधानों के तहत समस्त सुविधाएं प्रदान करने के बाद ही क्षेत्र में कार्य प्रारंभ करने का प्रस्ताव पारित हुआ था। पांचवी अनुसूची में शामिल क्षेत्र में ग्राम सभा में पारित प्रस्ताव का निर्णय सर्वाेपरि होता है। परंतु ग्राम सभा में पारित निर्णय को भी दरकिनार कर क्षेत्र में मनमाने ढंग से काम किया जा रहा है। विगत चार वर्षाें से लोग मुआवजा नौकरी और घर के लिए अपनी आवाज उठाते आ रहे है पर उनकी सुनने वाला ना तो कंपनी प्रबंधन है और ना ही प्रशासन के लोग। कंपनी के मनमाने और तानाशाही रवैये की वजह से ग्रामीणों द्वारा पूर्व के वर्षाें में खदान को कई बार बंद कराया जा चुका है। जब-जब खदान बंद हुई कंपनी और प्रशासन के लोगों की मौजूदगी में ग्रामीणों को आश्वासन दिया जाता रहा है कि आपकी मांगों को जल्द से जल्द पूरा कर दिया जायेगा। कभी एक हफ्ते तो कभी पन्द्रह दिन या अधिकतम एक से दो महीने का समय लगने की बात कहीं जाती रही है, पर ग्रामीणों की मांग आज तक पूरी नही हुई है। केते के विस्थापित होने वाले परिवारों के लिए बासेन में कंपनी द्वारा कुछ छोटे छोटे दड़बा नुमा आधे अधूरे घर बनवाये गये है जिसमें छोटे परिवार का भी गुजर बसर होना काफी मुश्किल है गलती से अगर वहां कोई मेहमान आ जायें और रात्रि विश्राम करना पड़े तो फिर या तो मेहमान बाहर सोंयेगे या घर मालिक। ग्रामीणों का कहना है कि केते गांव से विस्थापित होने वाले समस्त परिवारों को बुनियादी सुविधाओं के साथ जब तक मकान बनाकर नहीं दिया जायेगा तब तक गांव नही छोड़ेगे सभी लोग एक साथ गांव छोड़कर बसाहट ग्राम बासेन में जाकर बसेंगे। कंपनी के द्वारा बासेन में बनवाये गये मकानों में भी कई कमियां है बनाये गये घरों के समक्ष नालियों के नाम पर केवल गडढ्ा खोदकर छोड़ दिया गया है जिसमें कभी भी गंभीर दुर्घटना होने की आशंका है। घरों तक पहुंचने के लिए सड़कों का निर्माण भी आधा अधूरा करके छोड़ दिया गया है। इधर कंपनी के द्वारा केते गांव के चारो तरफ खुदाई का काम लगातार चल रहा है जिससे लोगों के साथ साथ मवेशियों का भी निस्तार मुश्किल हो गया है। गांव के लोग मिट्टी के पहाड़, धूल के गुब्बार और जलते कोयले का धुंआ और चैबीसों घंटे चलने वाले बड़ी-बड़ी वाहनों और मशीनों की कर्कश आवाज के बीच जीवन जीने को मजबूर है। आंदोलन में केते के अमीर साय सिरसो, हीरा साय ओरकेरा, मानसाय कुसरो, बुधराम कुसरो, मनबोध, कमान सिंह नेटी, पातर साय अर्माे, भोलेनाथ सिंह, धरमसाय सरपंच ग्राम पंचायत परसा, उमाशंकर उप सरपंच परसा, रघुवीर सिंह अर्माे, देवराम सिंह अर्माे, बजरंग सिंह सहित अन्य ग्रामीण शामिल रहे। तीसरे दिन अदानी प्रबंधन एवं ग्रामीणों के बीच प्रशासन के लोगों की उपस्थित में बनी सहमति के बाद खदान का काम शनिवार को फिर प्रारंभ हुआ।Saturday, 6 February 2016
Sunday, 31 January 2016
जन अधिकार यात्रा का उदयपुर आगमन, क्षेत्र के लोगों ने किया शानदार स्वागत
जन अधिकार यात्रा का उदयपुर आगमन
क्षेत्र के लोगों ने किया शानदार स्वागत
उदयपुरः- 26 जनवरी को रायगढ़ से आरंभ छत्तीसगढ़ जन अधिकार यात्रा का रविवार दोपहर को उदयपुर आगमन हुआ। यात्रा के काफिले में शामिल लोगों का स्थानीय जन समुदाय ने ढोल नगाड़ों के साथ अभूतपूर्व स्वागत किया। जन यात्रा का काफिला उदयपुर के नवनिर्मित बस स्टैण्ड से निकलकर नगर भ्रमण करते हुये और लड़ेंगे जीतेंगे जैसे गगनभेदी नारों के साथ पदयात्रा सीता बेंगरा रामगढ़ पहुंचा । जहां लुण्ड्रा, लखनपुर, बतौली, मैनपाठ आदि विकास खण्ड से आये लगभग 500 ग्रामीणों ने पदयात्रियों की अगवानी की। यात्रा रामगढ़ जाकर सभा के रूप में तब्दील हो गया। छत्तीसगढ़ जन अधिकार यात्रा की प्रमुख मांगों में पात्र परिवार को राशन कार्ड जारी कर खाद्यान्न की उपलब्धता सुनिश्चित कराना, मिट्टी तेल, चना का नियमित वितरण, प्रत्येक गर्भवती एवं धात्री महिला को छः हजार रूपये का मातृत्व लाभ निःशर्त दिया जाना, आंगनबाड़ी केन्द्रांे एवं स्कूलों में दिये जाने वाले मध्यान्ह भोजन में नियमित पौष्टिक आहार के साथ पानी एवं शौचालय की उपलब्धता सुनिश्चित कराना। पेशनधारियों को नियमित पेंशन, मनरेगा के मजदूरों का मजदूरी भुगतान 15 दिवस के भीतर सुनिश्चित कराना, 150 दिन का रोजगार उपलब्ध कराना, मजदूरी भुगतान में विलंब की स्थिति में मुआवजे का प्रावधान, पेसा कानून और वन अधिकार मान्यता कानून का सख्ती से पालन। शासकीय सेवा में पदस्थ डाॅक्टरों का निजी प्रेक्टिस पर रोक लगाना, निजी अस्पतालों पर सरकार का सख्ती से नियंत्रण। सुखे से प्रभावित किसानों की संपूर्ण कर्ज माफी एवं पर्याप्त मुआवजा देना। श्रम, कंपनी, पर्यावरण संरक्षण आदि कानूनों में जनविरोधी संशोधन न की जाये। पारदर्शिता, जवाबदेही एवं शिकायत निवारण की व्यवस्था को सख्ती से लागू हो तथा सूचना का अधिकार कानून से छेड़छाड़ न हो। खाद्य सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका, सामाजिक सुरक्षा आदि में उपयुक्त बजट का प्रावधान शामिल है। सभा को संबोधित करते हुये विभिन्न वक्ताओं ने इस अधिकार यात्रा के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी। वक्ताओं ने कहा कि हाल के वर्ष में छत्तीसगढ़ में जन अधिकारों पर संकट बढ़ता जा रहा है। खाद्य सुरक्षा स्वास्थ्य शिक्षा आजीविका जनता के मुलभूत अधिकार है परंतु आम जनता इन अधिकारों से वंचित होती जा रही है। इन अधिकारों से जुड़ी शासकीय योजनाओं का क्रियान्वयन कमजोर होता जा रहा है। केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा इन योजनाओं के बजट में लगातार कटौती की जा रही है। सुखे की समस्या झेल रहे प्रदेश में किसान आत्महत्या करने को विवश हो रहे है। सत्यापन के नाम पर लाखों परिवारों के राशन कार्ड निरस्त कर दिये गये है। मनरेगा का हाल बेहाल है लाखों मजदूरों की मजदूरी समय पर नहीं मिल पा रही है। मंहगे ईलाज के साथ महिलायें हिंसा व असुरक्षा की स्थिति से गुजर रही है। प्रदेश में मध्यान्ह भोजन व आंगनबाड़ी केन्द्रों में भी बच्चों को पोषक आहार दिये जाने का दावा किया जाता है इसके बावजूद प्रदेश के बच्चे काफी संख्या में कुपोषण के शिकार है। षडयंत्र पूर्वक विकास के नाम पर औद्योगिकीकरण कर आदिवासी किसानों को जल जंगल जमीन से बेदखल किया जा रहा है। हर मुद्दे में सरकार का झुकाव जनहित से ज्यादा औद्योगिक घरानों के प्रति ज्यादा दिखाई दे रहा है। इसके कई उदाहरण प्रदेश में देखने को मिलेंगे। पीढि़यों से जंगल में निवासरत् आदिवासी एवं पिछड़े परिवारों को उनकी पुस्तैनी जमीन से बेदखल कर उन्हे असहाय बना दिया गया है। कहीं खनिज संसाधन के दोहन के नाम पर तो कहीं तरह तरह के उद्योग लगाने के नाम पर। हर जगह शिकार पीढि़यों से निवासरत आदिवासी, पिछड़े गरीब किसान हो रहे है। उद्योगों और खनन् परियोजनाओं से विस्थापित होने वाले परिवारों को पुर्नवास के नाम पर दड़बा नुमा छोटे छोटे घर बनाकर रहने को दिया जा रहा है। जबकि उन परियोजनाओं में कार्य करने वाले लोगों को महलनुमा आलीशान सर्वसुविधायुक्त मकान बनाकर दिये जा रहे है। छत्तीसगढ़ जन अधिकार यात्रा को प्रदेश के विभिन्न सामाजिक संगठनों ने अपना समर्थन दिया है। उदयपुर में कार्यक्रम के पश्चात् यात्रा का काफिला अपने अगले पड़ाव मदनपुर कोरबा की ओर बढ़ चला। राज्य में विभिन्न पड़ावों से गुजरते हुये यात्रा का समापन 13 फरवरी 2016 को बुढ़ा तालाब रायपुर में होगा।
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